Death Valley of California | मौत की घाटी,जहाँ खिसकते है पत्थर | Amazing facts in Hindi | Mysterious Facts in Hindi
हमारी यह दुनिया रहस्यमयी जगहों से भरी है। उन्हीं रहस्यों में से एक है “डेथ वैली नैशनल पार्क के चलने वाले पत्थर”। उन पत्थरों को लेकर आम लोगों की धारणाएं कुछ और हैं, तो वैज्ञानिकों का मानना कुछ और है। दोस्तों आज हम जानेंगे “डेथ वैली” के बारे में जो की उत्तरी अमेरिका का एक विचित्र स्थान है।अमेरिका की ये डेथ वैली (Death Valley) भी एक रहस्यपूर्ण जगह है, इसका रहस्य अब तक लोगों की समझ में नहीं आया है। यह खतरनाक जगह अब तक हजारों लोगों की जान ले चुकी है, क्योंकि यहां जमीन का तापमान इतना है कि आप आसानी से खाना बना सकते हैं। यह जगह “मौत की घाटी” से जाना जाता है, क्योंकि यहाँ ज़िन्दा रह पाना नामुमकिन है।
अमेरिका के डेथ वैली कैलिफोर्नियाँ के दक्षिण – पूर्व में नेवाडा के सीमा के पास स्थित है। इस घाटी की लम्बाई 225 किलोमीटर और इसकी चौड़ाई अलग – अलग स्थानों पर अलग – अलग है। ये 8 से 24 किलोमीटर के बिच में है। मजेदार की बात ये है, की यहाँ की चौड़ाई फिक्स नहीं है। ये हमेशा घटती बढती रहती है। डेथ वैली उत्तरी अमेरिका के सबसे गर्म स्थान है। इसकी तली सबसे निचे है, और इसकी तली का सबसे निचा स्थान समुन्द्र तल से 86 मीटर, 282 फुट निचे है।दूसरी हैरान कर देने वाली बात ये है की समुन्द्र तल से 282 फीट निचे होने के बाद भी यह घाटी एक दम सुखी है। यहाँ नॉर्मल टेम्प्रेचर भी 50 डिग्री से ऊपर रहता है। यहाँ इंसान का रह पाना नामुमकिन है। साल 1913 में पूरी दुनिया में दुसरे नंबर पर यहाँ का तापमान 56.7 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था, जो गिनेस बुक ऑफ़ रेकॉर्ड में दर्ज है। लेकिन यह घाटी रंग – बिरंगी चट्टानों से भरी है। इसे देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है।
56.7 डिग्री तापमान के बावजूद अगर कोई यहाँ आने की सोचे तो एक और आंकड़ा उसके कदम रोक लेगा।यहाँ जमीनपर तापमान और ज्यादा रहता है। इस डेथ वैली पर जाना मतलब अपनी जान जोखिम में डालना मन जाता है। 15 जुलाई 1972 को यहाँ की जमीन का तापमान 89 डिग्री सेल्सियस पाया गया था, यानि पानी उबलने के तापमान से सिर्फ 11 डिग्री कम। यह घाटी लम्बी मगर संकरी है, और ऊँचे पहाड़ों से घिरी है। रात में भी यहाँ का तापमान 28 से 37 डिग्री के बिच रहता है।
भूवैज्ञानिकों का मनना है की इस जगह पर कभी समुन्द्र रहा होगा, क्योंकि यह समुन्द्र तल के निचे है और घाटियों में नमक के टीले भी हैं। इस क्षेत्र के रेगिस्तान बनने के साथ ही पानी सुख गया और ढेर सारा नमक बचकर टीला बन गया होगा। यहाँ की पहाड़ों और मिट्टी में अलग – अलग तत्व जैसे:- बोरेक्स, नमक, सोना और चाँदी पाए जाते हैं।
अमेरिका जाने के लिए लोगों को इस घाटी से होकर गुजरना पड़ता था। बेहद गर्मी होने की वजह से यहाँ से गुजरने वाले इंसान या जानवरों के शरीर में पानी की कमी हो जाती थी। जिसके चलते वे रास्ते में ही दम तोड़ देते थे, बाद में वैज्ञानिकों ने जब इस जगह पर खोज की तो उन्हें वहाँ बड़ी मात्रा में इंसानों और जानवरों की हड्डियाँ मिलीं। जिसके बाद से लोग इस जगह को ‘डेथ वैली’ (Death Valley) या ‘मौत की घाटी’ कहने लगे।अमेरिकी सरकार ने वर्ष 1933 में इस वैली में मरने वाले लोगों की याद में राष्ट्रीय स्मारक बनवाया है।
डेथ वैली के गर्म होने के कारण:-
डेथ वैली के इतना ज्यादा गर्म होने की बहुत सारी वजहें हैं, यहाँ बारिश बहुत कम होती है, सर्दी ना के बराबर पड़ती है। प्रशांत महासागर से उठी हवा इस जगह पर जब तक पहुँचती है, उसकी सारी नमी सोख ली जा चुकी होती है, इसलिए यहाँ सिर्फ गर्म हवाएं ही पहुँचती हैं। इस घाटी का सरफेस ऐसा है, जो सूरज की रौशनी में धधक उठता है। समुन्द्र तल से ज्यादा नीचे जाने पर हवा कम्प्रेस होकर गर्म हो जाती है, और यह घाटी अच्छी-खासी नीचे है,लेकिन फिर भी ये घाटी गर्म रहती है।
डेथ वैली में खिसकते पत्थर:-
इस डेथ वैली से जुड़े आश्चर्य केवल यहीं तक सीमित नहीं हैं। कहा जाता है कि यहाँ पर भारी-भरकम पत्थर भी नियमित रूप से आगे खिसकते रहते हैं। खिसकने वाले इन पत्थरों का वजन 100 किलो से ज्यादा होता है। वे अपनी जगह छोड़कर 3 किलोमीटर आगे तक पहुँच जाते हैं। जब पत्थर आगे खिसकते हैं तो उनके पीछे एक गहरा निशान बन जाता है। वैज्ञानिक आज तक इस बात को समझ नहीं पाए हैं कि बिना किसी बाहरी दबाव के ये भारी-भरकम पत्थर अपना स्थान छोड़कर आगे कैसे बढ़ जाते हैं। कई वैज्ञानिकों का अनुमान है कि तेज हवाओं की वजह से ऐसा हो सकता है। हालांकि हैरानी की बात ये है कि आज तक किसी ने इन पत्थरों को अपने सामने खिसकते हुए नहीं देखा है। ऐसे में ये पत्थर कब और कैसे आगे तक खिसकते हुए चले जाते हैं। यह बात लोगों के लिए आज तक बहुत बड़ा रहस्य बनी हुई है।
डेथ वैली या मौत की घाटी में रेसट्रैक प्लाया नाम का एरिया है जहां पहले कभी झील हुआ करती थी।अब वह झील सुख गई है, और पूरी इलाका समतल जमीन है, जो पत्थरों के खिसकने के लिए बहुत उपयुक्त है। वहाँ पत्थर चलते हैं, इसका पता 1948 में पहली बार चला। पत्थरों के आगे बढ़ने का निशान वहाँ जमीन पर जमी हुई धूल पर पड़ जाता है। हाल ही में वहाँ वैज्ञानिकों ने कुछ पत्थरों में जीपीएस ट्रैकर लगा दिए ताकि उनकी गतिविधि पर नजर रहे। किसी ने चट्टान को आगे की ओर खिसकते नहीं देखा है। ऐसे में लोगों के बीच इसको लेकर तरह-तरह की धारणाएं पाई जाती हैं। कुछ लोगों का कहना है कि एलियंस की वजह से ऐसा होता है तो कुछ मैग्नेटिक फील्ड को इसके लिए जिम्मेदार करार देते हैं।
कुछ वर्षों पहले नासा के एक वैज्ञानिक राफ लॉरेंज ने इसकी वजह पता लगाने का दावा किया। उनका कहना था, कि झील की सतह पर कुछ पानी रहता है, जो ठंड में जम जाता है और झील की सतह पर कुछ पत्थर मौजूद हैं। जिसके नीचे का पानी पत्थर बनकर उनसे चिपका रहता है। फिर जब मौसम गर्म होता है, तो पत्थर से चिपका बर्फ पिघल जाता है। जिससे झील की सतह पर थोड़ा पानी जमा हो जाता है। फिर जब हवा चलती है, तो दबाव पड़ने की वजह से पत्थर आगे खिसकने लगता है, और बर्फ की वजह से झील की सतह पर निशान पड़ जाता है। लेकिन सही मायिने में आज तक इस रहस्य का पता कोई नहीं लगा पाया है। “डेथ वैली नैशनल पार्क के चलने वाले पत्थर” आज भी एक रहस्य बनी हुई है।
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